Dehradun: Vikalp Printers (
2021)
Copy
BIBTEX
Abstract
सम्पादक – श्रमण सुव्रतसागर मुनि;
English rendering - Vijay K. Jain
'सत्यार्थ-बोध' सृष्टा आचार्य विशुद्धसागर एक ओर तार्किक मनीषी हैं तो दूसरी ओर शास्त्रज्ञ दार्शनिक।
जगत् के इस लक्ष्य-विहीन, अर्थहीन वातावरण में 'सत्यार्थ-बोध' मानवमात्र के लिए परमौषधि है जो अपूर्व-अपूर्व आनन्द की प्रदाता है तथा इष्ट की परमसिद्धि का कारण है।
'सत्यार्थ-बोध' अत्यंत सरल-सुबोध है, वाक्य-वाक्य में नीतियाँ गुंथित हैं। आचार्य विशुद्धसागर के सर्वोदयी, प्राञ्जल, सर्वहितकर एवं सुखकर वचन अतीव शान्तता का रसास्वादन कराने वाले हैं तथा हमारे परिणामों को निर्मल बनाने वाले हैं।
English Rendering – Vijay K. Jain;
Ācārya Viśuddhasāgara’s ‘Satyārtha-bodha’ – ‘Know The Truth’ – through its thirty-one chapters, instructs us on what attributes we need to adopt or renounce in order to attain the supreme state of perfection and bliss, in life present and beyond.
The instructions provided in the book constitute the true 'dharma' – the own-nature of substances – applicable universally to mankind.