Abstract
प्रस्तुत शोध-पत्र आस्टिन के द्वारा प्रतिपादित वाक्-क्रिया सिद्धांत का विमर्श है, जिसका प्रमुख ध्येय वाक्-क्रिया सिद्धांत का प्रतिरक्षण करने हेतु वाक्-स्थितियों की विवेचना है। इस क्रम में एक प्रश्न सार्थक होता है कि अब हम आस्टिन के विचारों की चर्चा क्यों कर रहे हैं? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए शोध-पत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम, आस्टिन के वाक् क्रिया सिद्धांत की चर्चा की गई है। द्वितीय, आस्टिन के पश्चात् अन्य वाक्-क्रिया सिद्धांतकारों जैसे- जॉन सर्ल, डेनियल वांडरवेकन, स्टीफन शिफर आदि के विचारों को प्रस्तुत किया गया है। तृतीय, वाक्-स्थितियों की अवधारणा को विकसित करते हुए आस्टिन के वाक्-क्रिया सिद्धांत के साथ उसके संबंध को निरूपित किया गया है। तदुपरांत, वाक्-स्थितियों के तीन प्रमुख आयामों अर्थात् परम्परा, वास्तविक सम्पादन एवं अभिप्राय को स्पष्ट किया गया है और साथ ही वाक्-क्रिया एवं वाक्-स्थिति के भारतीय संदर्भ का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए एक सम्यक निष्कर्ष निगमित करने का प्रयास किया गया है।