Abstract
प्रस्तावित शोध-पत्र तार्किक भाववाद के उद्भव, विकास एवं स्वरूप की विवेचना है। तार्किक भाववाद किस प्रकार समकालीन पाश्चात्य दर्शन में एक आंदोलन के रूप में उदित होता है एवं यह कैसे दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही तार्किक भाववाद एवं पूर्ववर्ती अनुवादवाद अथवा पूर्ववर्ती भाववाद के दार्शनिक विचारों में क्या समानता या असमानता है जो तार्किक भाववाद को दर्शनशास्त्र की इन विचारधाराओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम तार्किक भाववाद के मूलभूत उद्देश्यों की चर्चा की गई है। तदुपरांत, तार्किक भाववादियों के द्वारा इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कौन-कौन से निकष अथवा मानदंड प्रस्तुत किए गए हैं, इसकी विवेचना की गई है एवं अन्त में, तार्किक भाववादियों द्वारा प्रस्तुत निकषों का विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया गया है।