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    Shankarāchārya evam Bradley ke Darshan mean Nirapekṣha evam Ishvar ke Sampratyaya kā Anushīlan (शंकराचार्य एवं ब्रैडले के दर्शन में निरपेक्ष एवं ईश्वर के संप्रत्यय का अनुशीलन).Priyanshu Agrawal - 2020 - Drishtikon 12 (1):1799-1802.
    प्रस्तुत शोध-पत्र निरपेक्ष अथवा ब्रह्म एवं ईश्वर के संप्रत्यय को व्यापक रूप से शंकराचार्य एवं ब्रैडले के दर्शन के संदर्भ में विवेचित करता है। भारतीय एवं पाश्चात्य जगत के मूर्धन्य विद्वानों विशेषकर शंकराचार्य एवं ब्रैडले के निरपेक्ष एवं ईश्वर संबंधी विचारों में निहित साम्यताओं एवं वैषम्यताओं का अनुशीलन करना, इस शोध-पत्र का मुख्य उद्देश्य है। इस हेतु शोध-पत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम यह विमर्श किया गया है कि क्यों उक्त दोनों दार्शनिकों के संदर्भ में ही ब्रह्म एवं ईश्वर की अवधारणा का (...)
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  2.  43
    Sat evam Ābhās kī Dārshanik Vivechanā : Shankarāchārya evam Bradley ke Pariprekṣhya mean (सत् एवं आभास की दार्शनिक विवेचना : शंकराचार्य एवं ब्रैडले के परिप्रेक्ष्य में).Priyanshu Agrawal - 2023 - Padchinh 12 (4):54-69.
    प्रस्तावित शोध-पत्र सत् या निरपेक्ष तथा आभास या जगत संबंधित अवधारणा की शंकराचार्य एवं ब्रैडले के परिप्रेक्ष्य में दार्शनिक विवेचना है। इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक जगत के प्रख्यात विद्वानों विशेषतः शंकराचार्य एवं ब्रैडले के सत् एवं आभास संबंधी विचारों में समाविष्ट समानताओं एवं विषमताओं का व्यापक रूप से विश्लेषण प्रस्तुत करना है। इस कारण शोध-पत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम, यह प्रदर्शित किया गया है कि क्यों उक्त दोनों दार्शनिकों के संदर्भ में ही सत् एवं आभास की (...)
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  3.  31
    Tarkik Bhavwad mein Satyapneeyta ke Nikashon ki Sameeksha (तार्किक भाववाद में सत्यापनीयता के निकषों की समीक्षा).Priyanshu Agrawal - 2021 - Sriprabhu Pratibha 52:80-88.
    प्रस्तावित शोध-पत्र तार्किक भाववाद के उद्भव, विकास एवं स्वरूप की विवेचना है। तार्किक भाववाद किस प्रकार समकालीन पाश्चात्य दर्शन में एक आंदोलन के रूप में उदित होता है एवं यह कैसे दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही तार्किक भाववाद एवं पूर्ववर्ती अनुवादवाद अथवा पूर्ववर्ती भाववाद के दार्शनिक विचारों में क्या समानता या असमानता है जो तार्किक भाववाद को दर्शनशास्त्र की इन विचारधाराओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र (...)
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  4.  29
    Vishleshnatmak Darshan ka Udbhav evam Vikas: Ek Vishleshan (विश्लेषणात्मक दर्शन का उद्भव एवं विकास: एक विश्लेषण).Priyanshu Agrawal - 2021 - Darshnik Traimasik 67 (3):144-154.
    प्रस्तावित शोध-पत्र विश्लेषणात्मक दर्शन के उद्भव, विकास एवं स्वरूप का विवेचन एवं विश्लेषण हैं। विश्लेषणात्मक दर्शन किस प्रकार नवीन परम्परा के रूप में समकालीन पाश्चात्य दर्शन में उदित होता है एवं यह किस प्रकार से दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही प्राचीन एवं समकालीन दृष्टिकोणों में विश्लेषण की प्रकृति को लेकर क्या भिन्नता है जो विश्लेषणात्मक दर्शन को दर्शनशास्त्र की अन्य शाखाओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र (...)
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  5.  28
    Uttarwarti Wittgenstein ke Bhashayi Vishleshan ki Samalochana ( उत्तरवर्ती विट्गेन्सटाइन के भाषायी विश्लेषण की समालोचना).Priyanshu Agrawal - 2020 - Drishtikon 12 (6):2071-2075.
    प्रस्तुत शोध-पत्र भाषायी विश्लेषणात्मक दर्शन की प्रकृति एवं सीमाओं को व्यापक रूप से विट्गेन्सटाइन की अवधारणा के संदर्भ में विवेचित करता है। विट्गेन्सटाइन के दर्शन में किन प्रभावों के कारण साधारण भाषा दर्शन का उदय होता है एवं यह किस रूप में विश्लेषणात्मक दर्शन की परंपरा को समकालीन पाश्चात्य दर्शन में रेखांकित करता है, इसको स्पष्ट करना इस शोध-पत्र का उद्देश्य है। साथ ही पूर्व के दर्शनों एवं उत्तरवर्ती विट्गेन्सटाइन के दर्शन में वह कौन सा मूलभूत वैषम्य है, जिसके कारण (...)
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  6.  18
    Sat evam Ābhās kī Dārshanik Vivechanā : Shankarāchārya evam Bradley ke Pariprekṣhya mean (सत् एवं आभास की दार्शनिक विवेचना : शंकराचार्य एवं ब्रैडले के परिप्रेक्ष्य में).Priyanshu Agrawal - 2023 - Padchinh 12 (4):54-69.
    प्रस्तावित शोध-पत्र सत् या निरपेक्ष तथा आभास या जगत संबंधित अवधारणा की शंकराचार्य एवं ब्रैडले के परिप्रेक्ष्य में दार्शनिक विवेचना है। इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य भारतीय एवं पाश्चात्य दार्शनिक जगत के प्रख्यात विद्वानों विशेषतः शंकराचार्य एवं ब्रैडले के सत् एवं आभास संबंधी विचारों में समाविष्ट समानताओं एवं विषमताओं का व्यापक रूप से विश्लेषण प्रस्तुत करना है। इस कारण शोध-पत्र के अंतर्गत सर्वप्रथम, यह प्रदर्शित किया गया है कि क्यों उक्त दोनों दार्शनिकों के संदर्भ में ही सत् एवं आभास की (...)
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  7.  18
    Tarkik Bhavwad mein Satyapneeyta ke Nikashon ki Sameeksha (तार्किक भाववाद में सत्यापनीयता के निकषों की समीक्षा).Priyanshu Agrawal - 2021 - Sriprabhu Pratibha 52:80-88.
    प्रस्तावित शोध-पत्र तार्किक भाववाद के उद्भव, विकास एवं स्वरूप की विवेचना है। तार्किक भाववाद किस प्रकार समकालीन पाश्चात्य दर्शन में एक आंदोलन के रूप में उदित होता है एवं यह कैसे दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही तार्किक भाववाद एवं पूर्ववर्ती अनुवादवाद अथवा पूर्ववर्ती भाववाद के दार्शनिक विचारों में क्या समानता या असमानता है जो तार्किक भाववाद को दर्शनशास्त्र की इन विचारधाराओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र (...)
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  8.  15
    Vishleshnatmak Darshan ka Udbhav evam Vikas: Ek Vishleshan (विश्लेषणात्मक दर्शन का उद्भव एवं विकास: एक विश्लेषण).Priyanshu Agrawal - 2021 - Darshnik Traimasik 67 (3):144-154.
    प्रस्तावित शोध-पत्र विश्लेषणात्मक दर्शन के उद्भव, विकास एवं स्वरूप का विवेचन एवं विश्लेषण हैं। विश्लेषणात्मक दर्शन किस प्रकार नवीन परम्परा के रूप में समकालीन पाश्चात्य दर्शन में उदित होता है एवं यह किस प्रकार से दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही प्राचीन एवं समकालीन दृष्टिकोणों में विश्लेषण की प्रकृति को लेकर क्या भिन्नता है जो विश्लेषणात्मक दर्शन को दर्शनशास्त्र की अन्य शाखाओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र (...)
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  9.  12
    Uttarwarti Wittgenstein ke Bhashayi Vishleshan ki Samalochana ( उत्तरवर्ती विट्गेन्सटाइन के भाषायी विश्लेषण की समालोचना).Priyanshu Agrawal - 2020 - Drishtikon 12 (6):2071-2075.
    प्रस्तुत शोध-पत्र भाषायी विश्लेषणात्मक दर्शन की प्रकृति एवं सीमाओं को व्यापक रूप से विट्गेन्सटाइन की अवधारणा के संदर्भ में विवेचित करता है। विट्गेन्सटाइन के दर्शन में किन प्रभावों के कारण साधारण भाषा दर्शन का उदय होता है एवं यह किस रूप में विश्लेषणात्मक दर्शन की परंपरा को समकालीन पाश्चात्य दर्शन में रेखांकित करता है, इसको स्पष्ट करना इस शोध-पत्र का उद्देश्य है। साथ ही पूर्व के दर्शनों एवं उत्तरवर्ती विट्गेन्सटाइन के दर्शन में वह कौन सा मूलभूत वैषम्य है, जिसके कारण (...)
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