Vishleshnatmak Darshan ka Udbhav evam Vikas: Ek Vishleshan (विश्लेषणात्मक दर्शन का उद्भव एवं विकास: एक विश्लेषण)

Darshnik Traimasik 67 (3):144-154 (2021)
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Abstract

प्रस्तावित शोध-पत्र विश्लेषणात्मक दर्शन के उद्भव, विकास एवं स्वरूप का विवेचन एवं विश्लेषण हैं। विश्लेषणात्मक दर्शन किस प्रकार नवीन परम्परा के रूप में समकालीन पाश्चात्य दर्शन में उदित होता है एवं यह किस प्रकार से दार्शनिक विचारों में परिवर्तन लाता है, इसकी व्याख्या करना इस शोध-पत्र का प्रमुख उद्देश्य है। साथ ही प्राचीन एवं समकालीन दृष्टिकोणों में विश्लेषण की प्रकृति को लेकर क्या भिन्नता है जो विश्लेषणात्मक दर्शन को दर्शनशास्त्र की अन्य शाखाओं से पृथक करता है। इस क्रम में शोध-पत्र में विश्लेषणात्मक दर्शन के विकास को तीन चरणों में विभक्त किया गया है। प्रथम चरण ‘प्रारम्भिक विश्लेषणात्मक दर्शन’ के अन्तर्गत रसेल एवं मूर द्वारा प्रत्ययवाद के विरुद्ध नव्य-यथार्थवाद के प्रतिपादन की चर्चा की गयी है। तदुपरान्त, द्वितीय चरण ‘तार्किक विश्लेषणात्मक दर्शन’ के अन्तर्गत रसेल, पूर्ववर्ती विट्गेन्सटाइन एवं तार्किक भाववादियों के मतों की विवेचना की गई है। तृतीय चरण ‘भाषाई विश्लेषणात्मक दर्शन’ के अन्तर्गत परवर्ती विट्गेन्सटाइन, कैम्ब्रिज साधारण भाषा दर्शन एवं ऑक्सफोर्ड साधारण भाषा दर्शन का विवेचन एवं मूल्यांयन किया गया है।

Author's Profile

Priyanshu Agrawal
University of Allahabad, Prayagraj, U.P., India

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2024-12-26

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