Dehradun, India: Vikalp Printers (
2020)
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Abstract
जिनशासन प्रणेता आचार्य समन्तभद्र (लगभग दूसरी शती) ने "युक्त्यनुशासन", जिसका अपरनाम "वीरजिनस्तोत्र" है, में अखिल तत्त्व की समीचीन एवं युक्तियुक्त समीक्षा के द्वारा श्री वीर जिनेन्द्र के निर्मल गुणों की स्तुति की है। युक्तिपूर्वक ही वीर शासन का मण्डन किया गया है और अन्य मतों का खण्डन किया गया है। प्रत्यक्ष (दृष्ट) और आगम (इष्ट) से अविरोधरूप अर्थ का जो अर्थ से प्ररूपण है उसे युक्त्यनुशासन कहते हैं। यहाँ अर्थ का रूप स्थिति (ध्रौव्य), उदय (उत्पाद) और व्यय (नाश) रूप तत्त्व-व्यवस्था को लिए हुए है, क्योंकि वह सत् है। आचार्य समन्तभद्र ने यह भी प्रदर्शित किया है कि किस प्रकार दूसरे सर्वथा एकान्त शासनों में निर्दिष्ट वस्तुतत्त्व प्रमाणबाधित है तथा अपने अस्तित्व को सिद्ध करने में असमर्थ है। आचार्य समन्तभद्र ग्रन्थ के अन्त में घोषणा करते हैं कि इस स्तोत्र का उद्देश्य तो यही है कि जो लोग न्याय-अन्याय को पहचानना चाहते हैं और प्रकृत पदार्थ के गुण-दोषों को जानने की जिनकी इच्छा है, उनके लिए यह "हितोन्वेषण के उपायस्वरूप" सिद्ध हो। श्री वीर जिनेन्द्र का स्याद्वाद शासन ही "सर्वोदय तीर्थ" है।