“रांची (झारखण्ड) में सूचना के अधिकार 2005 के क्रियान्वयन के पश्चात् जनजीवन में आए परिवर्तन: एक सर्वेक्षण”

Saurabh Chandra (2014)
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Abstract

हमारा देश तीव्र गति से विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है | हमने “Vision – 20-20” का लक्ष्य अपने सामने रखा है | भारतीय प्रशासनिक ढ़ांचे में,जोकि ब्रिटिश उपनिवेशिक मनोदशा से काफी ग्रस्त है, में भ्रस्टाचार, अपारदर्शिता और जवाबदेहिता का आभाव, अवरोधक है | भ्रस्टाचार पर निगाह रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था “Transparency International, India (T.I.)” द्वारा 23 सितम्बर 2007 को नई-दिल्ली में ज़ारी “करप्शन परसेपसन इंडेक्स -2007” रिपोर्ट के अनुसार, “भ्रस्टाचार की अधिकता और ईमानदारी की कमी, दोनों ही मामले में, भारत पूरे दक्षिण एशिया में टॉप पर है | विश्व के 170 देशों में भारत 22वां सबसे भ्रष्ठ देश है | भारत में पिछले दो सालों की अपेक्षा करप्शन थोड़ा और बढ़ गया है | जब देश सुशासन की दिशा में आगे बढ़ रहा हो, प्रशासन में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता सुशासन की अनिवार्य शर्तें हैं | संविधान में सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार माना गया है | इस कानून को पारित करने का उद्देश्य सार्वजानिक प्राधिकरण और कार्यालयों के काम-काज़ में पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा देना तथा यह भी सुनिश्चित करना है कि सार्वजानिक प्राधिकरण एवं कार्यालय जनता के लिये खुले और जवाबदेह हों | सूचना का अधिकार जवाबदेही और सुशासन लाता है | सूचना का अधिकार कई मायनों में प्रशासन के विरुद्ध जनता को मिला अधिकार है जिसका अंतिम उद्देश्य प्रशासनिक सुधर ही है, इस लिये आवश्यक है कि, सूचना के अधिकार के विषय में शोध-कार्य किये जाएँ एवं इस अधिनियम के क्रियान्वयन की जमीनी सच्चाईयों को सामने लाया जाये कि,क्या वास्तव में यह अधिनियम प्रशासनिक तन्त्र और जनता के लिये परिवर्तन का वाहक सिद्ध हो पा रहा है? यदि नहीं तो इसमें सुधार कर इसकी कमियों को दूर किया जा सके |

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2014-02-13

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