Abstract
महात्मा गाँधी भारत के कुछ महान विद्वानों में से एक हैं जिन्होंने विश्वपटल पर अपनी एक अलग छाप छोड़ी है. उनके दर्शन को भारतीय जनमानस ने खुले मन से आत्मसात किया जिसका उदाहरण स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय में उनके प्रभाव से जाना जा सकता है. गाँधी के सत्य के प्रयोग, अहिंसा, सत्याग्रह, सर्वोदय आदि विचार आज हमारी भारतीय शिक्षा का एक अभिन्न अंग बन चुका है. राजनीति, धर्म, सामाजिक समस्याओं पर उनका चिन्तन हमें आश्चर्य में डाल देता है. उनका साहित्य लगभग सौ ग्रन्थों में प्रकाशित रूप में हमारे बीच उपलब्ध है. गाँधी के जीवन पर भारतीय दर्शन का व्यापक प्रभाव था. गीता और बुद्ध के ‘सर्वभूत हित’ के आदर्श से गाँधी प्रभावित रहे. उनके चिन्तन पर रस्किन एवम् टॉलस्टॉय का भी प्रभाव था. इस तरह गाँधी में पूर्व और पश्चिम का समन्वय दिखाई देता है. गाँधी के अनुसार आधुनिक सभ्यता अनीति और अधर्म पर आधारित है इसीलिए सर्वग्रासी है . गाँधी ने वर्तमान सभ्यता की चार प्रमुख समस्यायों को चिंताजनक माना-हथियारों एवम् हिंसा की समस्या, पर्यावरण , निर्धनता एवं मानवाधिकारों की समस्या. यह समस्याएं आधुनिक सभ्यता की देन है अत: उन्होंने इसकी आलोचना की तथा विकल्प में एक नई मानव सभ्यता का प्रारूप प्रस्तुत किया जो सादगी, संयम , अपरिग्रह एवम् स्वावलम्बन की जीवनशैली के साथ अहिंसात्मक एवम् शुद्ध साधनों तथा प्रकृति के साथ मैत्री व साहचर्य पर आधारित विकास पद्धति का पक्षधर हैं. आज गाँधी एक व्यक्ति न रहकर एक वाद की तरह हमारे सामने प्रकट होते है जो हमारे सामाजिक और राजनैतिक जीवन पर असर डाल रहा है. आज गाँधी –वन्दन एवं गाँधी-विरोध का प्रवाह निरंतर चल रहा है लेकिन देश एवम् विश्व की परिस्थितियाँ गाँधी चिन्तन की प्रासंगिकता को व्यापक रूप से उजागर कर रही हैं प्रस्तुत पत्र का उद्देश्य आधुनिक सभ्यता पर उनके विचारों को जानने का प्रयास है तथा आज के समय के अनुरूप समीक्षा करना भी है.