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  1. आचार्य समन्तभद्र विरचित "स्तुतिविद्या" Ācārya Samantabhadra’s Stutividyā (विजय कुमार जैन).Vijay K. Jain (ed.) - 2020 - Dehradun: Vikalp Printers.
    जिनशासन प्रणेता आचार्य समन्तभद्र (लगभग दूसरी शती) ने इस ग्रंथ "स्तुतिविद्या" में, जिसका अपरनाम "जिनशतक" अथवा "जिनस्तुतिशतं" है, अत्यंत अलंकृत भाषा में चतुर्विंशतिस्तव किया है। यह गूढ़ ग्रंथ आचार्य समन्तभद्र के अपूर्व काव्य-कौशल, अद्भुत व्याकरण-पांडित्य और अद्वितीय शब्दाधिपत्य को सूचित करता है। जिनेन्द्र भगवान की स्तुति करने का कारण यही है कि उनके द्वारा प्रतिपादित मोक्षमार्ग की अमोघता और उससे अभिमत फल की सिद्धि को देखकर उसके प्रति हमारा अनुराग (भक्तिभाव) उत्तरोत्तर बढ़े जिससे हम भी उसी मार्ग की आराधना-साधना करते (...)
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